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युक्तियुक्तं वचो ग्राह्यं बालादपि शुकादपि ।
युक्तिहीनं वचस् त्याज्यं वृद्धादपि शुकादपि॥१।।

"तर्कसंगत बात कोई बच्चा कहे या कोई तोता, उसे स्वीकारें। तर्कहीन बात कोई वृद्ध या महर्षि शुक भी कहें तो भी उसे त्याग दें!"
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युक्तियुक्तं वचो ग्राह्यं बालादपि शुकादपि।
युक्तिहीनं न च ग्राह्यं साक्षादपि बृहस्पतेः॥ २।।

युक्तियुक्तमुपादेयं वचनं बालकादपि।
अन्यत्तृणमिव त्याज्यमप्युक्तं पद्मजन्ममा॥ ३।।

युक्तियुक्तं वचो ग्राह्यं
बालादपि शुकादपि।
मूढः पश्यति जात्यादि
मूलं शालां च सर्वदा ॥ ४।।

युक्तियुक्तं वचो ग्राह्यं बालादपि शुकादपि।
युक्तिहीनं वचस्त्याज्यं व्यासादपि शुकादपि।। ५।।

युक्तियुक्तं वचो ग्राह्यं बालादपि शुकादपि।
युक्तिहीनं न च ग्राह्यं साक्षादपि भिषक्तमात्॥ ६।।

(Take what is logical even from a child or a parrot, but never take what is illogical even from the best of physicians/doctors.)

युक्तियुक्तं वचो ग्राह्यं बालादपि शुकादपि |
अयुक्तमपि न ग्राह्यं साक्षादपि वृहस्पते: ||७।।

(अर्थ - यदि कोई युक्तियुक्त बात आपसे कही जाती है, चाहे वह् एक बालक या एक बोलने वाले तोते द्वारा कही गयी हो, तो उसे ग्राह्य करना श्रेयस्कर है|
परन्तु कोई अयुक्तियुक्त बात यदि साक्षात देवगुरु वृहस्पति भी आपसे कहें तो उसे नहीं मानना चाहिये|)

युक्तियुक्तं वचः ग्राह्यं बालात अपि शुकात अपि ,
मूढ़ः पश्यति जाति आदि मूलं शालां च सर्वदा।

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