हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले,

डरे क्यों मेरा क़ातिल, क्या रहेगा उसकी गर्दन पर वो ख़ूँ,
जो चश्मे-तर से उम्र यूँ दम-ब-दम निकले,

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले,

भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर उस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले,

This is what comes to me right now for #shivsena in #Maharashtra

These lines are the climax:

"निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले"

#Ghalib is quite relevant right now.

@Memeghnad @DilliDurAst @ranasafvi @sanjayuvacha @majchowdhury @AdvManoj @rupagulab

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